जबसे पैदा होती है बेटी, तो एक ही बात होती है जमाने में; एक बाप लग जाता है तब से दिन रात कमाने में। कि जैसे भी हो पर दहेज तो कैसे न कैसे जुटाना है; और अपनी प्यारी बिटिया को उस दहेज से विदा कराना है। तब बड़ा मुश्किल हो जाता है खुद को संभालना; और दहेज के असहनीय दर्द से खुद को निकालना। जब लड़के का बाप कहता है लड़की के बाप से; कि कुछ शादी के बारे में बातें हो जायें आप से । तो लड़की के बाप का दिल बैठ जाता है; और अचानक से गला सूख जाता है। धड़कने तब एकाएक तेज चलने लगती है; और दिल में केवल एक ही बात उठती है। कि लड़के का बाप अब दहेज की बात करेगा; न जाने कितनी रकम की माँग करेगा। न जाने मैं इतनी रकम जुटा पाऊंगा या नहीं; न जाने कितना कुछ गिरवी रखना पड़ेगा कहीं। और न जाने कितने ही दिल बैचेन करने वाले; सवाल घनघोर मन में तब लगते हैं मंडराने। वो वक्त न जाने कितना कहर ढहाता है; बस जान न निकले बाकी सब हो जाता है। एक डरावने सपने से डरावना होता है वो पल; एक लड़की का बाप सोचे कैसे जाए ये टल। आँखें चौंधिया देने वाला उजाला भी अंधेरा सा जान पड़ता है; और बेटी की शादी का सपना किसी डरावने सपने सा...